"भारतीय संस्कृति की परंपरा अरण्य संस्कृति की रही है, जो मनुष्य प्रकृति के बीच में रहेगा वही प्रकृति से भी प्रेम करेगा।"
गैलरी
आइये, जाने, समझें और जुडें अपने पहाड़ से, अपने उत्तराखण्ड से, अपने अल्मोड़ा से . . .
अल्मोड़ा एक नज़र . . .
"अल्मोड़ा भारतीय राज्य अल्मोड़ा जिला का मुख्यालय है। अल्मोड़ा अपनी सांस्कृतिक विरासत, हस्तकला, खानपान, और वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है।
हल्द्वानी, काठगोदाम और नैनीताल से नियमित बसें अल्मोड़ा जाने के लिए चलती हैं। ये सभी बसे भुवाली होकर जाती हैं। भुवाली से अल्मोड़ा जाने के लिए रामगढ़, मुक्तेश्वर वाला मार्ग भी है। परन्तु अधिकांश लोग गरमपानी के मार्ग से जाना ही अदिक उत्तम समझते हैं। क्योंकि यह मार्ग काफी सुन्दर तथा नजदीकी मार्ग है।भुवाली, हल्द्वानी से ४० कि.मी. काठगोदाम से ३५ कि.मी. और नैनीताल से ११ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। तथा भुवाली से अल्मोड़ा ५५ कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ है।"
इतिहास
प्राचीन अल्मोड़ा कस्बा, अपनी स्थापना से पहले कत्यूरी राजा बैचल्देओ के अधीन था। उस राजा ने अपनी धरती का एक बड़ा भाग एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दे दिया। बाद में जब बारामण्डल चांद साम्राज्य का गठन हुआ, तब कल्याण चंद द्वारा १५६८ में अल्मोड़ा कस्बे की स्थापना इस केन्द्रीय स्थान पर की गई। कल्याण चंद द्वारा चंद राजाओं के समय मे इसे राजपुर कहा जाता था। 'राजपुर' नाम का बहुत सी प्राचीन ताँबे की प्लेटों पर भी उल्लेख मिला है।
६० के दशक में बागेश्वर जिले और चम्पावत जिले नहीं बनें थे और अल्मोड़ा जिले के ही भाग थे।
भूगोल
अल्मोड़ा कस्बा पहाड़ पर घोड़े की काठीनुमा आकार के रिज पर बसा हुआ है। रिज के पूर्वी भाग को तालिफत और पश्चिमी भाग को सेलिफत के नाम से जाना जाता है। यहाँ का स्थानीय बाज़ार रिज की चोटी पर स्थित है जहाँ पर तालिफत और सेलिफत संयुक्त रूप से समाप्त होते हैं।
बाज़ार २.०१ किमी लम्बा है और पत्थर की पटियों से से ढका हुआ है। जहाँ पर अभी छावनी है, वह स्थान पहले लालमंडी नाम से जाना जाता था। वर्तमान में जहाँ पर कलक्टरी स्थित है, वहाँ पर चंद राजाओं का 'मल्ला महल' स्थित था। वर्तमान में जहाँ पर जिला अस्पताल है, वहाँ पर चंद राजाओं का 'तल्ला महल' हुआ करता था।
सिमलखेत नामक एक ग्राम अल्मोड़ा और चमोली की सीमा पर स्थित है। इस ग्राम के लोग कुमाँऊनी और गढ़वाली दोनो भाषाएँ बोल सकते हैं। पहाड़ की चोटी पर एक मंदिर है, भैरव गढ़ी।
गोरी नदी अल्मोड़ा जिले से होकर बहती है।
अल्मोड़ा में एक प्रसिद्ध नृत्य अकादमी है, डांसीउस - जहाँ बहुत से भारतीय और फ्रांसीसी नर्तकों को प्रक्षिक्षण दिया गया था। इसकी स्थापना उदय शंकर द्वारा १९३८ में की गई थी। अल्मोड़ा नृत्य अकादमी को कस्बे के बाहर रानीधारा नामक स्थान पर गृहीत किया गया। इस स्थान पर से हिमालय और पूरे अल्मोड़ा कस्बे का शानदार दृश्य दिखाई देता है।
"इन पहाड़ों पर, प्रकृति के आतिथ्य के आगे मनुष्य द्वारा कुछ भी किया जाना बहुत छोटा हो जाता है। यहाँ हिमालय की मनमोहक सुंदरता, प्राणपोषक मौसम, और आरामदायक हरियाली जो आपके चारों ओर होती है, के बाद किसी और चीज़ की इच्छा नहीं रह जाती। मैं बड़े आश्चर्य के साथ ये सोचता हूँ की क्या विश्व में कोई और ऐसा स्थान है जो यहाँ की दृश्यावली और मौसम की बराबरी भी कर सकता है, इसे पछाड़ना तो दूर की बात है। यहाँ अल्मोड़ा में तीन सप्ताह रहने के बात मैं पहले से अधिक आश्चर्यचकित हूँ की हमारे देश के लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप क्यों जाते है।" - महात्मा गांधी
२००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार, अल्मोड़ा जिले की जनसंख्या ६,३०,५६७ है।
मुख्य अंश
अल्मोड़ा के प्रमुख पर्यटन स्थल
यहां कुछ ऐसे भी मंदिर है जिनकी आस्था की लोकप्रियता विदेशों तक में मशहूर है। यहां के पावन तीर्थो के कारण ही इसे देव भूमि पुकारा जाता है और यहां के विशेष मंदिर और उनकी कथाएं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
- यह मंदिर 800 वर्ष पुराना एवं अल्मोड़ा नगर से लगभग 17 किमी की दूरी पर पश्चिम की ओर स्थित उत्तराखण्ड शैली का है. अल्मोड़ा-कौसानी मोटर मार्ग पर कोसी से ऊपर की ओर कटारमल गांव में यह मंदिर स्थित है.
- यह मंदिर हमारे पूर्वजों की सूर्य के प्रति आस्था का प्रमाण है, यह मंदिर बारहवीं शताब्दी में बनाया गया था, जो अपनी बनावट एवं चित्रकारी के लिए विख्यात है. मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं आकर्षक प्रतिमायें उकेरी गई हैं. जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं. यह मंदिर उत्तराखण्ड के गौरवशाली इतिहास का प्रमाण है.
- महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं. उन्होंने यहाँ की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों एवं कला की प्रशंसा की है. इस मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं. सूर्य भगवान की यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर से बनाई गई है. यह मूर्ति बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है. कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है. कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल के सूर्य मन्दिर में आंशिक रूप में दिखाई देती है.
- देवदार और सनोबर के पेड़ों से घिरे अल्मोड़ा की पहाड़ियों में स्थित कटारमल का सूर्यमंदिर 9 वीं सदी की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. कस्तूरी साम्राज्य में इसे बनवाया गया था.
कटारमल सूर्य मंदिर
इस सूर्य मंदिर का लोकप्रिय नाम बारादित्य है. पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के मध्यकालीन राजा कटारमल ने किया था, जिन्होंने द्वाराहाट से इस हिमालयीय क्षेत्र पर शासन किया. यहां पर विभिन्न समूहों में बसे छोटे-छोटे मंदिरों के 50 समूह हैं. मुख्य मंदिर का निर्माण अलग-अलग समय में हुआ माना जाता है. वास्तुकला की विशेषताओं और खंभों पर लिखे शिलालेखों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 13वीं शदी में हुआ माना जाता है.
इस मंदिर में सूर्य पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं, कहा जाता है कि इनके सम्मुख श्रद्धा, प्रेम व भक्तिपूर्वक मांगी गई हर इच्छा पूर्ण होती है. इसलिये श्रद्धालुओं का आवागमन वर्ष भर इस मंदिर में लगा रहता है, भक्तों का मानना है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से ही हृदय में छाया अंधकार स्वतः ही दूर होने लगता है और उनके दुःख, रोग, शोक आदि सब मिट जाते हैं और मनुष्य प्रफुल्लित मन से अपने घर लौटता है. कटारमल गांव के बाहर छत्र शिखर वाला मंदिर बूटधारी सूर्य के भव्य व आकर्षक प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है. यह भव्य मंदिर भारत के प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर के पश्चात दूसरा प्रमुख मंदिर भी है. स्थानीय जनश्रुति के अनुसार कत्यूरी राजा कटारमल्ल देव ने इसका निर्माण एक ही रात में करवाया था. यहां सूर्य की बूटधारी तीन प्रतिमाओं के अतिरिक्त विष्णु, शिव और गणेश आदि देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां भी हैं.
ऎसा कहा जाता है कि देवी-देवता यहां भगवान सूर्य की आराधना करते थे, सुप्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन भी मानते थे कि समस्त हिमालय के देवतागण यहां एकत्र होकर सूर्य की पूजा-अर्चना करते थे. प्राचीन समय से ही सूर्य के प्रति आस्थावान लोग इस मंदिर में आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यों में हमेशा बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी दर्ज करवाते हैं, क्योंकि सूर्य सभी अंधकारों को दूर करते हैं, इसकी महत्ता के कारण इस क्षेत्र में इस मंदिर को बड़ा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है. कलाविद हर्मेन गोयट्ज के अनुसार मंदिर की शैली प्रतिहार वास्तु के अन्तर्गत है।
इस मंदिर की स्थापना के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं, कई इतिहासकारों का मानना है कि समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है, लेकिन वास्तुकला की दृष्टि से यह सूर्य मंदिर 21 वीं शती का प्रतीत होता है. वैसे इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी साम्राज्य के उत्कर्ष युग में 8वीं - 9वीं शताब्दी में हुआ था, तब इस मंदिर की काफी प्रतिष्ठा थी और बलि-चरु-भोग के लिये मंदिर मेम कई गांवों के निवासी लगे रहते थे.
इस ऎतिहासिक प्राचीन मंदिर को सरकार ने प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल घोषित कर राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित कर दिया है. मंदिर में स्थापित अष्टधातु की प्राचीन प्रतिमा को मूर्ति तस्करों ने चुरा लिया था, जो इस समय राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय, नई दिल्ली में रखी गई है, साथ ही मंदिर के लकड़ी के सुन्दर दरवाजे भी वहीं पर रखे गये हैं, जो अपनी विशिष्ट काष्ठ कला के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं.
कटारमल सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है. अल्मोड़ा से 14 किमी जाने के बाद 3 किमी पैदल चलना पड़ता है. यह मन्दिर 1554 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर की कुल दूरी 17 किमी के लगभग है.
उत्तराखंड के ऐसे चमत्कारिक मंदिरों में से एक है अल्मोड़ा जिले में स्थिति चितई गोलू देवता का मंदिर। अल्मोड़ा जिले में दुनिया का अपने आप में ऎसा ही एक अनोखा चित्तई स्थित गोलू देव का मन्दिर है। जो कि हमारे ईष्ट देवता भी कहलाते है जिसमे से एक है , गोलू देवता। जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है। उत्तराखंड के देव-दरबार महज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, वरदान के लिए ही नहीं अपितु न्याय के लिए भी जाने जाते हैं | यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान और शिव के अवतार गोलू देवता को समिर्पत है ।
कसार देवी उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के निकट एक गाँव है। यह कसार देवी मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर दूसरी शताब्दी का है। स्वामी विवेकानन्द १८९० में यहाँ आये थे। इसके अलावा अनेकों पश्चिमी साधक यहाँ आये और रहे। उत्तराखंड में मौजूद माता के इस मंदिर के रहस्य ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नींद उड़ा रखी है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसारदेवी मंदिर की 'असीम' शक्ति से नासा के वैज्ञानिक भी हैरान हैं। चुंबकीय शक्तियों की वजह से खास है कसार देवी मंदिर।
रविवार, 22 अगस्त 2010
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