कैंची में भी कई दुखियों की उन्होंने सेवा की थी। उनके पास कोई व्यक्ति क्यों आया है? यह बात वे पहले ही कहकर आगंतुक को आश्चर्य में डाल देते थे। आज भी बाबा के नाम पर कैंची में भोज का आयोजन होता है।
गरम पानी :
कैंची से आगे 'गरमपानी' नामक एक छोटा सा नगर आता है। यह स्थान हल्द्वानी, काठगोदाम और अल्मोड़ा के बीच का ऐसा स्थान है जहाँ पर यात्री चाय पीने और भोजन करने के लिए आवश्यक रुप से रुकते हैं। गरमपानी का पहाड़ी भोजन प्रसिद्ध है। यहाँ का रायता और आलू के हल्दी से रंग गुटके दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। हरी सब्जियों की यह मण्डी है। यहाँ से दूर-दूर तक पहाड़ी सब्जियाँ भेजी जाती हैं। पहाड़ी खीरे, मूली और अदरक आदि के लिए भी गरमपानी विख्यात है।
यहाँ से आगे बढ़ने पर खैरना आता है। खैरना में भुवालीगाड, कोसी में मिल जाती है। यहीं कोसी पर एक झूला पुल है। खैरना मछिलयों के शिकार के लिए विख्यात है। थोड़ा और आगे बढ़ने पर दो रास्ते हो जाते हैं। एक मार्ग रानीखेत को और दूसरा मार्ग अल्मोड़ा को चला जाता है।
अल्मोड़ा के मार्ग में खैरना से आगे काकड़ी घाट नामक स्थान पड़ता है। काकड़ी घाट का प्राचनी महत्व है। यहाँ पर एक पुराना शिव मन्दिर है। जब पर्वतीय अंचल में मोटर मार्ग नहीं थे तो बद्रीनाथ जाने के लिए यहीं से पैदल मार्ग कर्णप्रयाग के लिए जाता था। आज भी कई धार्मिक यात्री इसी मार्ग से पैदल चलकर बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा करने जाते हैं।
काकड़ी घाट के नजदीक ही एक पुल कोसी पर बना है। उस पुल को पार करते ही मोटर-मार्ग पहाड़ी की चोटी की ओर बढ़ने लगता है। यह पर्वतीय मार्ग-ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा में आता है।
'अल्मोड़ा' समुद्रतल से १६४६ मीटर की ऊँचाई पर ११.९ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह नगरी पहाड़ी के दोनों ओर पर्वत-चोटी पर बसा हुआ है। पहाड़ के एक छोर से दूसरे छोर तक लाला बाजार है। यह बाजार बहुत पुराना है और सुन्दर कटे पत्थरों से बनाया गया है। इसके अलावा अल्मोड़ा में अन्य सड़कें भी इतनी अच्छी बनी हुई हैं कि पर्यटक उन्हीं पर घूम-घूमकर प्रकृति का वास्तविक आनन्द लेते रहते हैं। चारों तरफ हरे-भरे जंगलों का सौन्दर्य अपने आप में एक विशेष आकर्षण पैदा करता है। वसन्त ॠतु में अल्मोड़ा की छवि दर्शनीय हो जाती है। यह अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक जलवायु वाला पर्वतीय नगर है इसीलिए गर्मियों में यहाँ अधिक चहल-पहल रहती है और सैलानियों का जमघट लगा रहता है।
कुमाऊँनी संस्कृति का केन्द्र अल्मोड़ा है। कुमाऊँ के रसीले गीतों और उल्लासप्रिय लोकनृत्यों की वास्तविक झलक अल्मोड़ा में ही दिखाई देती है। कुमाऊँनी भाषा का प्रामाणिक स्थल भी यही नगर है। कुमाऊँनी वेशभूषा का असली रुप अल्मोड़ा में ही दिखाई देता है। आधुनिकता के दर्शन भी अल्मोड़ा में पूर्णत: हो जाते हैं। पहाड़ी भोजन के होटल यहाँ कई हैं। मिठाईयों में भी बाल मिठाई यहाँ की प्रसिद्ध है।
कुमाऊँ के भव्य दर्शन करने हेतु पर्यटक अल्मोड़ा आना अधिक पसन्द करते हैं। यहाँ से हिमालय के दर्शन भी हो जाते हैं और कुमाऊँनी जन-जीवन की वास्तविक जानकारी भी हो जाती है।
यहाँ कुछ ऐसे स्थल हैं जो पर्यटकों, पदारोहियों और सैलानियों को आकर्षित करते रहते हैं।
मा मानिला- यह मन्दिर बहुत ही पूराना ओर एतिहासिक है| अल्मोड,ा के पाली पछायू क्षेत्र में क‰यूरी राजा सारंग देव के प्रथम पुत्र विरम देव का शासन था। सन् 1488 में चन्द्रवंशी राजा किती–चन्द कुमायू पर अपना शासन की पिपासा से क‰यूरी राज्यों को नरसंहार का क‰लेआम से जीतते हुये, भिकियासैण पहुचकर लखनपुर ह्यविराट नगरी वत–मान चौखुटियाहृ पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे कि लखनपुर के शासक विरमदेव को ज्ञात होन पर उन्होंने अपने सुख, सुविधा व स्वाभिमान की परवाह किये बिना बेकसुर प्रजा के क‰लेआम से बचने के लिये सन्धि करके, चंदराजा को अपनी प्रजा व राज्य सौंप दिया तब पाली जीता गया। तब यहां के शासक विरमदेव ने सन् 1488 में लखनपुर के किले की तज– पर सयणामानुर में किला बनाकर बसे फिर क‰यूरी कुलदेवी अगनेरी ह्यआग्नेय दिशा में स्थित होने सेहृ की तज– पर मानिला वन में मन्दिर बनाकर "मानिलादेवी" की स्थापना की।
"मां मानिलादेवी" जनश्रुति के आधार पर मां मानिलादेवी के प्राचीन मंदिर से करूणामयी मां के भक्तों के प्रति वा‰सल्य रूप में प्रकट होकर आवश्यक निदे–श देती थी। एक बार दूर प्रदेश से कुछ व्यापारी बैलों के कुछ जोड,े खरीदने के उ¬द्देश्य से यहां आए। उन्हें बैलों का एक जोड,ा बहुत पसंद आया परन्तु उन बैलों के मालिक ने उन्हें वे बैल नही दिये, प्रिय बैलों के न मिलने पर उन्होंने उस बैलों की जोडी को रात में चुराने का निश्चय किया। मां मानिला देवी ने रात में उन बैलों के मालिक को आवाज ह्यधादहृ से जगा दिया कि कुछ लोग तुम्हारे बैलों को चुराने आ रहे हैं। यह आवाज सुनकर, चोर व्यापारी वहा जाने कि हिम्मत नहीं जुटा पाये, इस घटना से उन व्यापारियों को मां की शक्ति का आभास हुआ जैसा कि उन्होंने पहले भी सुन रखा था तब उन्होंने मां की मूति– को अपने प्रदेश में ले जाने का निश्चय किया और मन्दिर से मूति– उखाडने लगे, परन्तु बहुत प्रय‰न करने पर भी वह मूति– उनसे नहीं उठी इसी खीचातानी में मूति– का हाथ टूट गया तब उन्होंने मूति– का हाथ ही लेकर अपने प्रदेश पश्चिम की ओर चले ही थे कि इस हस्त शिला के भार से वे एक के बाद एक हताश होते गये तब चारों व्यापारीयों ने मिलकर भी हाथ उठाने में धीरे–धीरे असफल होते गये, फिर उन्होंने क्षेत्र से खरीदे बैलों की जोडी से भी खिचवाने पर मां की हस्त शिला को मानिला शक्तिपीठ ह्यवत–मान मल्ली मानिला मन्दिरहृ से आगे न ले जा सके। तब से मां की यहां स्थापित होकर दोनों मन्दिरों में पूजा होती है परन्तु मां के प्र‰यक्ष दशी– निदे–शों से क्षेत्र के भक्त वंचित हो गये।
अल्मोड़ा के किले :
अल्मोड़ा नगर के पूर्वी छोर पर 'खगमरा' नामक किला है। कत्यूरी राजाओं ने इस नवीं शताब्दी में बनवाया था। दूसरा किला अल्मोड़ा नगर के मध्य में है। इस किले का नाम 'मल्लाताल' है। इसे कल्याणचन्द ने सन् १५६३ ई. में बनवाया था। कहते हैं, उन्होंने इस नगर का नाम आलमनगर रखा था। वहीं चम्पावत से अपनी राजधानी बदलकर यहाँ लाये थे। आजकल इस किले में अल्मोड़ा जिले के मुख्यालय के कार्यलय हैं। तीसरा किला अल्मोड़ा छावनी में है, इस लालमण्डी किला कहा जाता है। अंग्रेजों ने जब गोरखाओं को पराजित किया था तो इसी किले पर सन् १८१६ ई. में अपना झण्डा फहराया था। अपनी खुशी प्रकट करने हेतु उन्होंने इस किले का नाम तत्कालीन गवर्नर जनरल के नाम पर - 'फोर्ट मायरा' रखा था। परन्तु यह किला 'लालमण्डी किला' के नाम से अदिक जाना जाता है। इस किले में अल्मोड़ा के अनेक स्थलों के भव्य दर्शन होते हैं।
नन्दा देवी मन्दिर :
गढ़वाल कुमाऊँ की एक मात्र ईष्ट देवी भगवती नन्दा पार्वती है। नन्दा अष्टमी के दिन सम्पूर्मम पर्वतीय अंचल में नन्दा की विशेष पूजा होती है। नन्दा देवी की मूर्ती केले के पत्तों और केले के तनों से बनाई जाती है। नन्दा की सवारी भी निकाली जाती है। नन्दा अष्टमी भाद्रपद अर्थात् सितम्बर के महीने में आती है।
यहाँ पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन दर्शनार्थी आकर पूजा करते हैं। मेले में झोड़ा, चाँचरी और छपेली आदि नृत्यों का भी सुन्दर आयोजन होता है। कुमाऊँ के कई अंचलों की लोकनृत्य की पार्टियाँ यहाँ आकर अपना-अपना कौशल दिखाती हैं, पर्यटक, पदारोही, सैलानी और साहित्य एवं कला प्रेमी इन्ही दिनों अधिकतर कुमाऊँ की संस्कृति तता वहाँ के जन-जीवन की वास्तविक जानकारी करने हेतु अल्मोड़ा पहुँचते हैं। अल्मोड़ा की नन्दा देवी के दर्शन करना अत्यन्त लाभकारी माना जाता है। अल्मोड़ा में नन्दा देवी के अलावा त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, महावीर मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, भैरवनाथ मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर, रत्नेश्वर मन्दिर और उलका देवी मन्दिर प्रसिद्ध हैं।
जामा मस्जिद, मैथोडिस्ट चर्च और अंगलीकन चचें प्रसिद्ध है।
कसार देवीमंदिर :
यह मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर से हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियों के दर्शन होते हैं। कसार देवी का मंदिर भी दुर्गा का ही मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना ईसा के दो वर्ष पहले हो चुकी थी। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक आंका जाता है।
चित्तई मंदिर :
कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोक - देवता 'गोल्ल' का यह मंदिर नन्दा देवी की तरह प्रसिद्ध है। इस मंदिर का महत्व सबसे अधिक बताया जाता है। अल्मोड़ा से यह मंदिर ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिमालय की कई दर्शनीय चोटियों के दर्शन यहाँ से होते हैं।
कालीमठ :
यह अल्मोड़ा से ५ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एक ओर हिमालय का रमणीय दृश्य दिखाई देता है और दूसरी ओर से अल्मोड़ा शहर की आकर्षक छवि मन को मोह लेती है। प्रकृतिप्रेमी, कला प्रेमी और पर्यटक इस स्थल पर घण्टों बैठकर प्रकृति का आनन्द लेते रहते हैं। गोरखों के समय राजपंडित ने मंत्र बल से लोहे की शलाकाओं को भ कर दिया था। लोहभ के पहाड़ी के रुप में इसे देखा जा सकता है।
सिमतोला :
यह अल्मोड़ा नगर से ३ कि.मी. की दूरी पर 'सिमतोला' का 'पिकनिक स्थल' सैलानियों का स्वर्ग है। प्रकृति के अनोखे दृश्यों को देखने के लिए हजारों पर्यटक इस स्थल पर आते-जाते रहते हैं।
मोहनजोशी पार्क :
इस जगह पर एक ताल का निर्माण किया गया है। मानव निर्मित 'v' आकार के इस ताल की सुन्दरता इतनी आकर्षक है कि सैलानी घंटों इसी के पास बैठकर प्रकृति की अद्भुत छवि का आनन्द लेते रहते हैं। यहाँ का मोहक और शान्त वातावरण पर्यटकों के लिए काफी सुखद अनुभव रहता है।
मटेला:
मटेला का सुखद वातावरण सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ के बाग अत्यन्त सुन्दर हैं। 'पिकनिक' के लिए कई पर्यटक यहाँ अपने-अपने दलों के साथ आते हैं।
नगर से १० कि.मी. की दूरी पर एक प्रयोगात्मक फार्म भी है।
राजकीय संग्रहालय :
अल्मोड़ा में राजकीय संग्रहालय और कला-भवन भी है। कला प्रेमियों तथा इतिहास एवं पुरातत्व के जिज्ञासुओं के लिए यहाँ पर्याप्त सामाग्री है।
ब्राइट एण्ड कार्नर :
यह अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल २ कि.मी. कब हूरी पर एक अद्भुत स्थल है। इस स्थान से उगते हुए और डूबते हुए सूर्य का दृश्य देखने हजारों मील से प्रकृति प्रेमी आते रहते हैं।
इंगलैण्ड में 'ब्राइट बीच' है। उस 'बीच' से भी डूबते और उगते सूरज का दृश्य चमत्कारी प्रभाव डालने वाला होता है। उसी 'बीच' के नाम पर अल्मोड़ा के इस 'कोने' का नाम रखा गया है।
अल्मोड़ा सुन्दर आकर्षक और अद्भुत है। इसीलिए नृत्य-सम्राट उदयशंकर को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपनी 'नृत्यशाला' यहीं बनायी थी। उनके कई विश्वविख्यात नृत्यकार शिशुओं ने अल्मोड़ा की रमणीय धरती में ही नृत्य कला की प्रथम शिक्षा ग्रहण की थी।
उदयशंकर की तरह विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर को भी अल्मोड़ा पसन्द था। वे यहाँ कई दिन तक रहे।
विश्व में वेदान्त का शंखनाद करने वाले स्वामी विवेकानन्द अल्मोड़ा में आकर अत्याधिक प्रसन्न हुए थे। उन्हें इस स्थान में आत्मिक शान्ति मिली थी।
अन्य दर्शनीय स्थल
अल्मोड़ा स्वंय में दर्शनीय है। परन्तु, उसके आस-पास के क्षेत्रों में भी कई ऐसे स्थल हैं जिनका सौन्दर्य सैलानियों के लिए आकर्षण का विषय है।
कटारमल
कटारमल का सूर्य मन्दिर अपनी बनावट के लिए विख्यात है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा अर्चना करते रहै हैं। उन्होंने यहाँ की मूर्तियों की कला की प्रशंसा की है।
कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रुप में दिखाई देती है।
कटारमल के सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है। अल्मोड़ा से १४ कि.मी. जाने के बाद ३ कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। मन्दिर १५५४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर १७ कि.मी. की निकलकर जाता है। रानीखेत से सीतलाखेत २६ कि.मी. दूर है। १८२९ मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। कुमाऊँ में खुले मैदान के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। कुमाऊँ का यह ऐसा खिला हुआ रमणीय स्थान है यहाँ देश के कोने-कोने से हजारों बालचर तथा एन.सी.सी. के कैडेट अपने-अपने शिविर लगाकर प्रशिक्षण लेते हैं। यहाँ ग्रीष्म ॠतु में रौनक रहती है। प्रशिक्षण के लिए यहाँ पर्याप्त व्यवस्था है। दूर-दूर तक कैडेट अपना कार्यक्रम करते हुए, यहाँ आन्नद मनाते हैं।
'सीतला देवी' का यहाँ प्राचीन मंदिर है। इस देवी की इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत मान्यता है। इसीलिए 'सीतलादेवी' के नाम से ही इस स्थान का नाम 'सीतलाखेत' पड़ा है। यहाँ पर्यटकों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम ने यहाँ पर चार शैय्याओं वाला एक आवासगृह बनाया है। प्रकृति-प्रेमियो के लिए 'सीतलाखेत' का सम्पूर्ण क्षेत्र आकर्षण से बरा हुआ है।
'सीतलाखेत' का मुख्य आकर्षम यह है कि यहाँ से हिमालय के भव्य दर्शन होते हैं। छुट्टियों को शान्तिपूर्वक बिताने के लिए यह अत्युत्तम स्थान है।
उपत :
रानीखेत-अल्मोड़ा मोटर-मार्ग के पाँचवें किलोमीटर पर उपत नामक रमणीय स्थल है। कुमाऊँ की रमणीयता इस स्थल पर और भी आकर्षक हो जाती है। उपत में नौ कोनों वाला विशाल गोल्फ का मैदान है। गोल्फ के शौकीन यहाँ गर्मियों में डेरा डाले रहते हैं। रानीखेत समीप होने की वजह से सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी और पर्वतारोही भी इस क्षेत्र में भ्रमणार्थ आते रहते हैं। प्रकृति का स्वच्छन्द रुप उपत में छलाक हुआ दृष्टिगोचर होता है। रानीखेत से प्रतिदिन सैलानी यहाँ आते रहते हैं।
कालिका :
उपत में लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर कालिक नामक स्थल भी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विख्यात है। कालिका में 'कालीदेवी' का मंदिर है। यहाँ काली के भक्त निरन्तर आते रहते हैं। 'कालिका' में वन विभाग की फूलों की एक नर्सरी है। इस नर्सरी के कारण अनेक वनस्पति शास्र के शोधार्थी और प्रकृति-प्रेमी यहाँ जमघट लगाए रहते हैं।
मजखाली :
कालिक से केवल ७ कि.मी. दूर पर रानीखेत-अल्मोड़ा-मार्ग पर मजखाली का अत्यन्त सौन्दर्यशाली स्थल स्थित है। मजखाली की धरती रमणीय है। यहाँ से हिमालय का मनोहारी हिम दृश्य देखने सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी आते रहते हैं। मजखाली से कौसानी का मार्ग सोमेश्वर होकर जाता है। रानीखेत से कौसानी जाने वाले पर्यटक मजखाली होकर ही जाना पसन्द करते हैं।
सुविधाएँ
पर्यटकों, प्रकृति-प्रेमियोम, पर्वतरोहियों और पदारोहियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अल्मोड़ा आज का सर्वोत्तम नगर है। यहाँ रहने के लिए अच्छे होटल हैं।
अलका होटल, अशोक होटल, अम्बैसेडर होटल, ग्रैंड होटल, त्रिशुल होटल, रंजना होटल, मानसरोवर, न्यू हिमालय होटल, नीलकंठ होटल, टूरिस्ट कॉटेज, रैन बसेरा होटल, प्रशान्त होटल और सेवॉय होटल आदि कई ऐसे होटल हैं जहाँ रहने की सुन्दर व्यवस्था है।
इसके अतिरिक्त होलीडे होम, सर्किट हाऊस, सार्वजनिक निर्माण विभाग का विश्राम-गृह, वन विभाग का विश्राम-गृह और जुला परिषद का विश्राम-गृह भी सैलानियों के लिए उपलब्ध किये जा सकते हैं।
यहाँ के ऊनी वस्र प्रसिद्ध है। लाला बाजार और चौक बाजार इसके केन्द्र हैं।
अल्मोड़ा जाने के लिए काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेसन है। काठगोदाम से अल्मोड़ा (खैरना होकर) केवल ९० कि. मी. दूर है। अल्मोड़ा से नैनीताल ६७ कि.मी., पिथौरागढ़ १०९ कि.मी. और दिल्ली ३७८ कि.मी. की दूरी पर (मोटर मार्ग से) स्थित है। इन स्थानों के लिए नियमित बस-सेवायें उपलब्ध है।
bahut pahle ek poem padhi thi..."OHH ALMORA"aaj sidhh ho gai...very nice post
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपकी सुंदर टिप्पड़ियों का स्वागत है आशा जी आशा करता हूँ आप आगे भी ऐसे ही सहयोग देते रहेंगी तो आज आपने अल्मोड़ा दर्शन फिर से किये चलो धन्या भाग हमारे जो हम आपको अल्मोड़ा से जोड़ सके . . . आपके सहयोग का में बहुत बहुत आभारी हूँ.
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