ऋतुओं के स्वागत का त्यौहार- हरेला
क्या है "हरेला" इसे जाने ? हरेला: हरयाव कुमाऊं भाषा में इसे हरयाव भी कहा जाता है।
हरेला उत्तराखंड का १ प्रमुख त्यौहार है। हरेला उत्तराखंड की संस्कृति का १ विभिन्न अंग है। ये त्यौहार सामाजिक सोहार्द के साथ साथ कृषि व मौसम से भी सम्बन्ध रखता है।
हरेले का पर्व हमें नई ऋतु के शुरु होने की सूचना देता है, उत्तराखण्ड में मुख्यतः
हरेला उत्तराखण्ड में हरेले के त्यौहार को “वृक्षारोपण त्यौहार” के रुप में भी मनाया जाता है। श्रावण मास के हरेला त्यौहार के दिन घर में हरेला पूजे जाने के उपरान्त एक-एक पेड़ या पौधा अनिवार्य रुप से लगाये जाने की भी परम्परा है। माना जाता है कि इस हरेले के त्यौहार के दिन किसी भी पेड़ की टहनी को मिट्टी में रोपित कर दिया जाय, पांच दिन बाद उसमें जड़े निकल आती हैं और यह पेड़ हमेशा जीवित रहता है।
वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से द्याप्ता थान (स्थानीय ग्राम देवता) में भी मनाये जाने का प्रावधान है। मन्दिर में हरेला बोया जाता है और पुजारी द्वारा सभी को आशीर्वाद स्वरुप हरेले के तिनके प्रदान किय जाते हैं। यह भी परम्परा है कि यदि हरेले के दिन किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाये तो जब तक हरेले के दिन उस घर में किसी का जन्म न हो जाये, तब तक हरेला बोया नहीं जाता है। एक छूट भी है कि यदि परिवार में किसी की गाय ने इस दिन बच्चा दे दिया तो भी हरेला बोया जायेगा।
यह त्यौहार हिन्दी सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार मनाये जाते हैं, शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, सो आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण (सावन) माह से होती है, इसलिये एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है। किसी भी ऋतु की सूचना को सुगम बनाने और कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऋतुओं का स्वागत करने की परम्परा बनी होगी।
हरेले की बुवाई
उत्तराखण्ड में देवाधिदेव महादेव शिव की विशेष अनुकम्पा भी है और इस क्षेत्र में उनका वास और ससुराल (हरिद्वार तथा हिमालय) होने के कारण यहां के लोगों में उनके प्रति विशेष श्रद्धा और आदर का भाव रहता है। इसलिये श्रावण मास के हरेले का महत्व भी इस क्षेत्र में विशेष ही होता है। श्रावण मास के हरेले के दिन शिव-परिवार की मूर्तियां भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हें डिकारे कहा जाता है।
१. चैत्र: चैत्र मास के प्रथम दिन बोया जाता है और नवमी को काटा जाता है।
२. श्रावण: श्रावन लगने से नौ दिन पहले अषअड़ में बोया जाता है और १० दिन बाद काटा जाता है।
३. आशिवन: आश्विन नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।

जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
{अर्थात-हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश के समान प्रशस्त (उदार) बनो, सूर्य के समान त्राण, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपो,इतने दीर्घायु हो कि (दंतहीन) तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़े।}
इस पूजन के बाद परिवार के सभी लोग साथ में बैठकर पकवानों का आनन्द उठाते हैं, इस दिन विशेष रुप से उड़द दाल के बड़े, पुये, खीर आदि बनाये जाने का प्रावधान है। घर में उपस्थित सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है, साथ ही देश-परदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारो-नातेदारों को भी अक्षत-चन्दन-पिठ्यां के साथ हरेला डाक से भेजने की परम्परा है।
हरेले का महत्व
श्रावण मास के हरेला का अपना महत्व है| जैसे की विदित है की श्रावण मास भगवान शंकर के प्रिय मास है, इसलिए इस हरेले को कही कही हर-काली के नाम से भी जन जाता है|
चैत्र व आश्विन मास के हरेले मौसम के बदलाव के सूचक है|
चैत्र मास के हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है और आश्विन मास के हरेला सर्दी के आने की सूचना|
सूर्य की रोशनी से दूर रहने के कारण इनका रंग पीला होता है| काटने के बाद इसे देवता को चढ़या जाता है| फ़िर घर के सभी सदस्यों को ये लगाया जाता है| यहा लगाने से अर्थ है की सर व कान पर हरेला के तिनके रखे जाते है|
हरेला शुभ कामनाओं के साथ रखा जाता है| छोटे बच्चो को हरेला पैर से ले जाकर सर तक लगाया जाता है| इसके साथ ही १ शुभ गीत "जी रये-जाग रये" गाया जाता है| इस गीत में दीर्घायु होने की कामना की जाती है|
हरेला काटने के बाद इसमे अक्षत-चंदन डालकर भगवान को लगाया जाता है|
हरेला घर मे सुख, समृधि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है| हरेला अच्छी कृषि का सूचक है| हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है की इस साल फसलो को नुक्सान ना हो|
हरेला के साथ जुड़ी ये मान्यता है की जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा|लाग बग्वाई, लाग बसंत पंचमी
लाग हर्यावा, लाग बिरुर पंचमी
जी रए, जाग रए
हिमाल में हयू छन तक, गंग ज्यू में पानी छन तक
सिल ल्वाड़ भात खान तक, जात टेक बेर हगन जाण तक
स्याव जै बुद्धि ऐ जो , सि जै तरान
आकाश बराबर उच् है जै, धरती बराबर चकोव
जी रए, जाग रए, बची रए
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